गुरुवार, 16 सितंबर 2010

जुगाड़ की महिमा


बात करीब 1995 की है, जब अमेरिका से एक डेलिगेशन भारत इसलिए आया ताकि यहां के खराब हो चुके कम्प्यूटर्स को सुधारा जा सके। चूंकि यह पहला साल था जब कम्प्यूटर को ग्राफिक्स यूजर इंटरफेस बनाया गया था। इसलिए भारतीय उद्योग जगत के लोग चाहते थे, कि इसे वही लोग सुधारें या इसमें नया कुछ डालें, जिन्होंने कम्प्यूटर बनाने की विधिवत ट्रेनिंग ली है। लेकिन भारतीय परंपरा के अनुसार कम्प्यूटर सुधारने की तकनीक एक जुगाड़ के सहारे पहले ही भारत में आ चुकी थी। सो कई ऐसे लोग यहां थे जो किसी न किसी तरह इस मशीन को सुधार देते थे।

जब कम्प्यूटर सुधाने के लिए अमेरिकी इंजीनियरों का दल भारत पहुंचा, तो उनका स्वागत कुछ ऐसा हुआ मानो अमेरिका के राष्ट्रपति किसी राजकीय यात्रा पर भारत आए हों। भव्य समारोह में उद्योग जगत के लोगों ने भारतीय समाज के सामने उन्हें कम्प्यूटर का भगवान बनाकर पेश कर दिया। लेकिन... चूंकि कम्प्यूटर सुधारने की तकनीक पहले ही यहां पहुंच चुकी थी, सो कई लोगों ने इस स्वागत समारोह से किनारा कर लिया। दिल्ली में उतरा दल जब एक चार पहिए वाहन से आगरा की ओर रवाना हुआ, तभी उनके साथ एक घटना घट गई। और वो थी उनकी गाड़ी का मैंटनेंस के अभाव में खराब हो जाना। चूंकी सभी इंजीनियर थे, इसलिए सभी ने बारी-बारी गाड़ी को सुधाने की कोशिश की। लेकिन वे सभी असफल ही रहे। तभी रास्ते से एक ट्रक का हेल्पर गुजरता हुआ उनसे टकरा गया। विदेशी मेहमानों को मुसीबत में देख उससे रहा न गया। अपनी टूटी-फूटी भाषा में उसने पूछ ही लिया...

हेल्परः साहेब गाड़ी खराब हो गई है क्या?... हां विदेशी मेहमानों ने मुंह बनाकर उससे बात की।

हेल्परः क्या मैं आपके लिए कुछ कर सकता हूं?... नहीं हम सब इंजीनियर हैं, और इस गाड़ी को देख चुके हैं कहीं कोई खराबी नहीं है, बस जरूरत है इसे कंपनी में भेजकर दोबारा तैयार किया जाए

लेकिन हेल्पर का दिल नहीं माना और उसने मेहमानों की मदद करना अपना फर्ज समझकर गाड़ी पर हाथ लगा ही दिया। और ये क्या…! सेल्फ से दो तारों को निकालकर दांतों से छीलकर उसने दोनों को आपस में टकराया... और गाड़ी शुरू हो गई…! फिर क्या था विदेशी मेहमानों से रहा नहीं गया और उससे पूछ ही लिया ये तुमने कैसे किया?

बस साहेब थोड़ा सा जुगाड़ लगाया और गाड़ी शुरू हो गईहेल्पर ने भारतीय सभ्यता के अनुसार मुस्कुराते हुए विदेशी मेहमानों को जवाब दे दिया। लेकिन विदेशी मेहमानों को उसकी जुगाड़ वाली टेक्नोलॉजी इतनी भा गई, कि उन्होंने अपने देश के राष्ट्रपति को फोन लगाकर इस तकनीक को भारत से मंगाने की मांग कर डाली। अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने देश के आभामंडल के अनुसार इस तकनीक को भारत से मांगने में थोड़ी झिझक महसूस की।

विदेशी मेहमान अपने वास्तविक काम को अंजाम देने के लिए आगरा की एक फर्म पहुंचे। यहां उन्हें एक ऐसे कम्प्यूटर को सुधारना था जो पिछले डेढ़ साल से बंद था। और कंपनी के मालिक चाहते थे, कि इस सिस्टम को इसके भगवान ही सुधारें। हुआ भी कुछ ऐसा ही, विदेशी मेहमान वहां पहुंच ही गए। लेकिन कई घंटों की मशक्कत के बाद भी वे कम्प्यूटर को दोबारा शुरू करने में असफल रहे। थक हारकर उन्होंने कम्प्यूटर को विदेश ले जाकर सुधारने का मन बनाया। लेकिन तभी कंपनी में कम्प्यूटरों का मैंटनेंस रखने वाला एक बांइडर वहां पहुंचा, और उसने इंजीनियरों से कम्प्यूटर सुधारने की अनुमति मांगी। लेकिन इंजीनियरों को उसकी यह हरकत मुंह पर की गई बेज्जती सी महसूस हुई। तब भी उन्होंने गुस्से में उसे कम्प्यूटर को देख लेने की इजाज़त दे दी।

बाइंडर ने भी कम्प्यूटर का CPU खोला और उसके SMPS पर दो-तीन हाथ जमा दिए। और क्या था कम्प्यूटर से एक बीप निकली, यानि कम्प्यूटर शुरू हो चुका था। विदेशी मेहमानों ने इसे देखकर भी हैरत की, और पूछ ही लिया ये तुमने कैसे किया?”

बाइंडरः बस सर थोड़ा सा जुगाड़ लगाया और कम्प्यूटर शुरू हो गया।

अब विदेशी इंजीनियरों ने इस तकनीक को अमेरिका ले जाने की ठान ही ली, और उन्होंने दोबारा राष्ट्रपति को फोन लगाकर सारी बातें बताईं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी महसूस किया कि उन्हें आभामंडल का मोह छोड़कर भारतीय प्रधानमंत्री से बात करनी चाहिए। तब उन्होंने फोन पर भारतीय प्रधानमंत्री से जुगाड़ तकनीक की मांग की। लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री ने इस तकनीक को अमेरिका को देने से इंकार कर दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति को यह बात नागंवार गुजरी, और उन्होंने भारत से सारे संबंधों को तोड़ने की बात कह डाली। तब भारतीय प्रधानमंत्री ने बड़े ही विनम्र भाव से कहा- आदरणीय प्रेसिडेंट साहब भारत की जुगाड़ तकनीक किसी को नहीं दी जा सकती। क्योंकि ये ऐसी तकनीक है। जिसके सहारे आजादी के बाद से भारत चल रहा है। अब देखिए न हमारे यहां रक्षा क्षेत्र हो या अंतरिक्ष अन्वेषण का क्षेत्र, सभी में जितनी भी खोज की जा रही है, वो सब इसी तकनीक की ही तो देन है। अगर हम इसे आपको दे देंगे तो हमारे पास बचेगा ही क्या?”

प्रेसिडेंटः आदरणीय प्रधानमंत्री जी हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं। अगर आप तकनीक नहीं देना चाहते तो न सहीं, लेकिन हमारी भी एक विनती है, इस तकनीक से काम करने वाले मेहनतकशों को आप अमेरिका भेजें। ताकि हमारा देश प्रगति करे और आपका काम भी निकल जाए।

प्रधानमंत्रीः प्रेसिडेंट साहब ये हमारे संबंध और तकनीक के मेल को बनाए रखने वाला बीच का रास्ता है, जो आपने चुना है। हम इस पर ज़रूर काम करेंगे क्योंकि ये ह्यूमन आउटसोर्सिंग का जुगाड़ है।