मंगलवार, 17 अगस्त 2010

चंपू कबाड़ी और टीला रिमझिम का आभामंडल खेल


चंपू कबाड़ी और टीला रिमझिम दोनों इतने करीबी हैं, कि दोनों को एक-दूसरे के प्रति की गई दूसरों की छींटा-कसी भी नहीं भाती। यही वजह रही कि दोनों जब ज्यूपिटर ग्रह पर गए, तो उन्होंने किसी की भी बात पर ध्यान नहीं दिया। मसलन आम लोगों ने उन्हें चेताया, कि परग्रह पर जाना खतरे से खाली नहीं है। वहां किसी भी तरह की गड़बड़ी हुई, तो आप दोनों की मित्रता भी टूट सकती है। लेकिन दोनों ने किसी भी बात की परवाह किए बिना, ज्यूपिटर ग्रह में जाने का निवेदन स्वीकार किया। इसकी एक खास वजह भी थी। वह ये कि दोनों ही अमूमन एक जैसे ही थे। दोनों की विचारशीलता, काम करने का तरीका, लोगों के परिचय का अंदाज करीब-करीब सभी एक जैसा था। हालांकि दोनों को वहां अलग-अलग मकसद से बुलाया गया था, लेकिन वे अपने काम साधने में इतना महारत हासिल कर चुके थे, कि एक ही काम को दो तरीके से कर सकते थे।
टीला और कबाड़ी के ज्यूपिटर ग्रह में पहुंचने से पहले ही, उनके स्वागत की भव्य तैयारियां हो गईं। दोनों के कदम जैसे ही ज्यूपिटर की पावन धरा पर पड़े। लोगों में साहस बंध गया कि अब वे सारे काम पूरे हो जाएंगे, जिसके लिए इन महान विभूतियों को बुलाया गया है। दोनों ने ज्यूपिटर के वासियों से वे सारे वादे किए, जिससे उनके विश्वास को बल मिले। टीला और कबाड़ी ने ज्यूपिटर की सरकार का दिया हुआ पद भी ग्रहण किया, और सौगंध उठाई कि वे जिस कार्य के लिए यहां आए हैं, उसे पूर्ण किए बिना चैन से नहीं बैठेंगे। दोनों ने अपने कार्य को परिणति तक पहुंचाने के लिए कई भर्तियां भी कर डालीं। भर्ती हुए अधिकारियों में कुछ लोग ऐसे थे, जिन्हें इन दोनों विभूतियों के साथ कार्य करने का पहला अवसर प्राप्त हुआ। जबकि कुछ आयात किए हुए ऐसे अधिकारी थे। जो कबाड़ी और टीला बहिन जी की कर्तव्यनिष्ठा से पहले ही परिचित थे।
मैडम रिमझिम और मिस्टर चंपू ने सबसे पहले अपने अधिकारियों के साथ एक बैठक में उन्हें वे सारी गाइड लाइंस दे दीं, जिसके तहत उन्हें अपने कामों को देखना था। फिर क्या था, सारे अधिकारियों ने अपने-अपने काम के लिए एक बजट का खाका तैयार कर लिया। जिसे जोड़कर ज्यूपिटर सरकार को सौंप दिया गया। यानि सभी ने ऐसा माहौल निर्मित कर दिया, कि सरकार उतनी रकम खर्च करने को तैयार हो जाए। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। ज्यूपिटर सरकार ने अपने बजट भाषण में इस बात का ऐलान कर दिया, कि जिस काम के लिए आदरणीय टीला जी और कबाड़ी जी को बुलाया गया है। उस कार्य की पूर्णता के लिए उनके बनाए गए बिल पास किए जा रहे हैं।
टीला और कबाड़ी ने बिल के पास होते ही अपनी योजना को कार्य रूप में परिणित करना शुरू किया। कबाड़ी ने अपने दरबारी को ही अपना कोषाध्यक्ष घोषित कर दिया। और उसके माध्यम से टैंडर देने शुरू कर दिए। सारे टैंडर संबंधित ठेकेदारों को सौंप दिए गए, और सभी ने अपना काम शुरू कर दिया। वक्त बीतता गया। लोगों में इस बात का ढांढस बंधता गया, कि कबाड़ी जी और टीला जी जिस काम के लिए हमारे ग्रह में आए हैं, वो जल्द ही पूरा होने वाला है। लेकिन कुछ ही समय में एक ऐसा खुलासा हुआ, कि सभी के होशफाख़्ता हो गए। दरअसल टीला और कबाड़ी के अधीन जो अधिकारी काम कर रहे थे। वे करोड़ों रुपए की तो चाय ही पी गए। जबकि उन्होंने जिन चीज़ों की खरीदी की थी, वह भी पर ग्रह से आयात की गईं। जिसकी वजह से रुपयों का हिसाब-किताब गोल-मोल हो गया। हालांकि इस मामले के खुलने के बाद टीला जी और कबाड़ी जी की किरकिरी तो नहीं हुई, लेकिन उनसे लोगों का भरोसा उठने लगा।
टीला और कबाड़ी अब लोगों का विश्वास जीतने के लिए कई तरह से प्रयास में लग गए। कभी भाषणबाज़ी करते हुए ही दोनों कह देते, कि जो काम आप देख रहे हैं। वे कार्य की समय अवधि से दो कदम आगे है, लेकिन ज्यूपिटर की जनता की आंखों पर भी कोई पट्टी तो बंधी थी नहीं। वे दोनों को ज्यूपटर के सर्वोच्च न्यायलय तक लेकर चले गए। टीना और कबाड़ी को भी जब इस बात का एहसास हुआ, कि वे इस दुनिया के लोगों की आंखों में धूल नहीं झोंक सकते, तो उन्हें अपनी योजना का खुलासा करना ही पड़ा। दरअसल टीला रिमझिम और चंपू कबाड़ी को इस ग्रह में बुलाया गया था एक ब्रम्हांड स्तरीय खेल का आयोजन कराने के लिए। जिसका नाम दिया गया था आभामंडल खेल। इस खेल के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई चंपू कबाड़ी को। जबकि आधारभूत संरचना की तैयारी करनी थी टीला बहिन जी को। जिसके लिए दोनों ने अपने विवेकानुसार अधिकारियों का पैनल तैयार किया। लेकिन इस पैनल ने वही किया, जो अपने देश में करते आए थे। यानि इन्होंने शुरू कर दिया तैयारियों से पहले का खेल। जिससे इनकी जेब गर्म हो जाए..., और हुआ भी कुछ ऐसा ही। सभी ने अपनी-अपनी तिजोरियां मोटी रकम से भर लीं।
टीला और कबाड़ी ज्यूपिटर की अदालत में अपने आप को निःसहाय से महसूस करने लगे। क्योंकि वे अपने देश में तो थे नहीं, कि कोई आभामंडल का नया ढोंग रच सकें। जैसे ही सरकारी वकील ने दोनों से एक सवाल किया। सफाई देने की बजाए दोनों ने सच्चाई उगल दी।
कबाड़ीः “ हे ज्यूपिटर ग्रह की न्यायमूर्ति मुझे अपने सारे गुनाह कबूल करने हैं। सबसे पहले तो मैं आपको ये बताना चाहूंगा, कि मेरा नाम चंपू कबाड़ी ही इसलिए पड़ा, क्योंकि मैं दूसरों को चूना लगाते रहा हूं, और तो और मैंने आज तक जिस काम को भी हाथ में लिया है। उसका कबाड़ा ही निकाला है। जबकि टीला बहिनजी का भी ऐसा ही कुछ हाल है। उनका नाम भी उन्हीं के काम के अनुरूप रखा गया है। मतलब ये कि आधारभूत संरचना का जब भी इन्हें काम मिलता, वे सबसे पहले तो इतनी खुदाई करवातीं, कि जगह-जगह पर मिट्टी के टीले बन जाते। जबकि उनके उपनाम में दशा झलकती है उनकी बनाई इमारतों की। जिसमें से बारिश की रिमझिम हमेशा जारी रहती है। अब रही हमारी कार्य योजना की बात, तो हे न्यायमूर्ति मैं आपको बताना चाहूंगा कि हमें जब भी ऐसे वैश्विक खेलों के आयोजन सौंपे गए। हमने सिर्फ आभामंडल के बारे में ही सोचा। हमें वह सब करना मंजूर हुआ, जिससे हमारा आधारभूत आभामंडल स्थापित हो। ताकि हमारा नाम देश की जनता कभी भुला न सके। “
टीलाः “ हे न्यायमूर्ति मैं भी आपसे अपने गुनाहों की क्षमा मांगती हूं। मैं भी आपसे कहना चाहती हूं, कि मैंने कबाड़ी का साथ आज तक इसलिए दिया क्योंकि हम जिस बिरादरी से हैं, उसमें अभामंडल का ही खेल ही खेला जाता है। मसलन हमारी धरा में एक ऐसी कौम है, जिसे नेता कहते हैं। इस कौम का काम है अपना आभामंडल तैयार करना। ताकि अपने क्षेत्र के साथ वे पूरे देश के भौतिक पटल पर अपना एक आभामंडल तैयार कर सकें। बस यही कारण था, कि आपने हमें जैसे ही आभामंडल खेल के लिए पावन ज्यूपिटर ग्रह से निमंत्रण दिया, हमने स्वीकार कर लिया। “
न्यायमूर्तिः “ आप दोनों की बातें सुनने के बाद मुझे इस बात का एहसास तो हो गया, कि आप लोगों से कोई गुनाह नहीं हुआ है। बल्कि हमसे एक बड़ी गलती हुई है। हमने आप दोनों को आभामंडल खेल के आयोजन के लिए बुलाया, ताकि ज्यूपिटर का ब्रम्हांड में नाम हो सके। लेकिन हमारे देश की सरकार का ये निर्णय गलत निकला। आपने तो हमारी धरा पर भी अपना आभामंडल तैयार कर लिया। इसलिए हे महान विभूतियों आप दोनों को हम वापस आपकी धरा के लिए विदा कर रहे हैं। ताकि वहां आपका आभामंडल और गहरा हो जाए। यानि आप वहां पर विख्यात हो जाएंगे कि ज्यूपिटर जैसे ग्रह में भी आपका आभामंडल तैयार हो चुका है। “

5 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ ख़ास है.... इतने बढिया लेख के लिए हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत उम्दा सरजी... कितना बड़ा लिखते हैं की पूरा पढ़ ही नहीं पाते....

    जवाब देंहटाएं
  3. ये सच है गलती हुई है चादर से बाहर पैर निकालने की। चंपू कबाड़ी और टीला रिमझिम को लेते हुए आपने बहुत ही शानदार तरीके से कॉमनवेल्थ गेम्स पर निशाना साधा है। ऐसे ही लिखते रहो....
    निलेश

    जवाब देंहटाएं
  4. ब्लाग जगत में आपका स्वागत है।

    आशा है कि आप अपने लेखन से ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।



    आपके ब्लाग की स्वागत चर्चा पर जाने के लिए यहां क्लिक करें।

    जवाब देंहटाएं
  5. मनीष तुम्हारी टिप्पणी मिली
    अच्छा लगा
    लिखूंगा जरूर लिखूंगा
    निराशा नहीं होगी

    जवाब देंहटाएं