अचानक एक दिन फकीरचंद ने सुना कि उसके पड़ोस करोड़ीमल ने अपने आप को कंगाल घोषित कर दिया। यूं तो करोड़ीमल पहले ही मध्यम वर्गीय परिवार के मुखिया थे, लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ, जो उन्होंने अपने आप को कंगला साबित कर दिया? मेरे मित्र फकीरचंद को ये बात रास नहीं आई, और उसने इसके पीछे की सच्चाई जानने की कोशिश की। फकीरचंद को पता चला कि करोड़ीमल के घर पर रोज़ कोई बुढ़िया आती है, और उससे उसके ईष्ठ देवता के नाम पर कुछ-न-कुछ ले ही जाती है। बेचारा करोड़ीमल करता भी क्या? अपनी दान वीरता भी तो उसे समाज में साबित करनी ही थी। लेकिन बड़ा सवाल ये सामने आया कि एक बुढ़िया अगर उससे रोज़ कुछ ले जाती है। तब भी वो अपने आप को कंगाल कैसे साबित कर सकता है? सो फकीरचंद ने इस बात को गहराई से जानने की कोशिश की।
फकीरचंद ने आखिरकार इस बात का पता लगा ही लिया कि करोड़ीमल की कंगाली के पीछे कौन सी बुढ़िया का हाथ है? लेकिन हैरत में डालने वाली यह बात सामने आई, कि वह वही बुढ़िया है जिसने फकीरचंद को धनवान होने की दुत्कार लगाते हुए बात न करने की नसीहत दी थी। अब फकीरचंद ने ठान ही लिया, कि उस डायन जैसी बुढ़िया के कारनामों की परत खोल कर ही दम लेगा।
एक दिन फकीरचंद ने डायन बुढ़िया को रास्ते में ही रोक लिया। और पूछ बैठा तुम कौन हो?... तुम्हे आज बताना ही पड़ेगा। बूढ़ी महिला ने अपने डायन जैसे मुख पर भूतैली हंसी लाते हुए कहा, तुम जानकर भी क्या करोगे फकीरचंद? क्योंकि मेरी असलियत का असर सिर्फ मध्यम वर्गीय और निम्न वर्गीय लोगों पर ही पड़ता है। फकीरचंद हैरान था कि बुढ़िया को उसका नाम भी पता है। और ये भी पता है कि उसके पास बहुत रुपए हैं। फिर भी फकीरचंद ने हिम्मत करते हुए उससे कहा कि जब तुम्हें मेरे बारे में सब पता है, और तुम्हें इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता, तो अपने बारे में खुलासे से क्यों डरती हो? आखिरकार बुढ़िया ने फकीरचंद की उत्सुकता को शांत करने के लिए कह ही दिया। तुम रात के वक्त मिलना, जब सारा बाज़ार बंद हो जाए। मैं तुम्हें अपने बारे में सब कुछ बता दूंगी।
तय समय के अनुसार फकीरचंद और बुढ़िया रात में एक-दूसरे से मिले। बुढ़िया ने बताया कि वो कोई साधारण बुढ़िया नहीं है। बल्कि वो इस देश पर हावी महंगाई है। जो अमीरों को सिर्फ डायन जैसी दिखती है। लेकिन उसका असर सिर्फ मध्यम और निम्न वर्गीय परिवार पर ही पड़ता है। बुढ़िया ने खुलासा किया कि करोड़ीमल मध्यम वर्गीय परिवार का मुखिया था। और उसकी दान वीरता की प्रवृत्ति ही उसे कंगाल बनाने में सफल हो गई। दरअसल करोड़ीमल अगर दान या इधर-उधर के खर्च से बचता तो रुपए बचाने की आदत उसमें आती, और वो अपने नाम की तरह धनवान बन सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। रही बात फकीरचंद तुम्हारी तो तुमसे मैं घबराती हूं। क्योंकि मैं कितनी भी कोशिश करूं तुम्हे लूट नहीं सकती। आखिर मुझे जन्म तुम जैसे लोगों ने ही तो दिया है। तुम अपना रुपया-पैसा अपने देश में नहीं रखते। जिसकी वजह से बार-बार मेरी नींद खुलती है। और मैं गरीबों के आशियानों तक पहुंच जाती हूं। रही बात तुम जैसे लोगों के काम की, तो जमाखोरी, कालाबाजारी, चीज़ों के दाम बढ़ाना तुम्हारी रोज़ी है। ऐसे में मैं सिर्फ गरीबों पर ही तो असर डाल सकती हूं।
फकीरचंदः महंगाई माता आप तो शहरों के मध्यम वर्गीय या निम्न वर्गीय लोगों के इलाकों में भी रह सकती हो। फिर गांव के गरीब ही तुम्हें क्यों दिखाई देते हैं।
महंगाईः बड़े शहरों में गरीबों के लिए बनाए गए आशियाने हमेशा धनवान, राजनीतिक लोग घोटाला करके खरीद लेते हैं। ऐसे में मेरा वहां रहना किसी को भी रास नहीं आने वाला। इसलिए मुझे सिर्फ गांव नज़र आए, जहां सच्चे गरीब रहते हैं। खैर तुम्हें क्या फर्क पड़ता है? चार दिन तुम उनकी बेबसी पर साथ हो लोगे, पर आगे तो अपना ही काम करोगे। और तुम्हारा यही काम मुझे बार-बार जन्म देता रहेगा।